कुछ अफ़साने : लाज़िमी हैं -(6)
दरवाज़े की घंटी बजी ...
हिरण की तरह कुलाँचे मारती हुई दरवाज़े की तरफ दौड़ी ... रास्ते में एक कुर्सी , एक मेज़,एक ज़मीन पर औंधे पड़े गद्दे और एक पायदान से टकराई .. हैरत की बात थी कि किसी को भी चोट नहीं आई थी .. गुलदान अपनी अच्छी किस्मत के चलते पहले ही बच गया था ... गनीमत थी कि ये फासला दस क़दम का था।
सामने खड़ा था … उसकी आँखों में गिलहरियाँ फुदक रही थी ... इसने उल्लू की तरह गोल गोल आँखें घुमाते हुए अच्छी तरह तसल्ली की कि जो सामने खड़ा था ,ये वो ही था … क़द .. हाँ .. वही था , रंगत ... उसी की थी … आँखें … बिलकुल वही ,और आवाज़ भी … पर वो बोला कहाँ था ? एक अरसे बाद देख रही थी उसे .. उसी की उम्मीद में तो ताबड़तोड़ चढ़ाई की थी दरवाज़े पर … वो सामने भी था … यक़ीन करना फिर भी मुश्किल हो रहा था … मुंह खोले खड़ी थी उसके अंदर आने की उम्मीद में। वो था कि अंदर आने का नाम ही नहीं ले रहा था … इसके दिमाग की फिरकी चलनी शुरू हो चुकी थी 'इतनी आसानी से थोड़े ही आएगा ड्रामेबाज़।' मच्छर की तरह भिनभिनाई , 'अब क्या आरती उतारूँ .. बांसुरी बजाऊं .. कोयल बुलाऊँ ..... '
वो इत्मीनान से खड़ा देख रहा था। इससे पहले कि वो जो अच्छा अच्छा सोच रही थी ,उसे उगल देती , वो बोल पड़ा ..
'' मैं जो कहने आया हूँ , भूल जाऊं मैं ,मुझे अंदर आने दे। मुंह बंद कर ले और दरवाज़ा खोल दे ''
''तू मुझे कन्फ़यूज़ करता है ''
''अब मैंने क्या किया ?''
'' तू मुझे बताकर भी तो आ सकता था। ''
''मैं क्या बरात लेकर आ रहा था ?"
''लाया क्यों नहीं ?''
''तुझे मुझसे शादी करनी है न ?''
''तो ?''
'' कर। ''
''पागल हुआ है ! ''
"तो तूने झूठ बोला था। ''
''वो तेरा पेशा है ''
''सच साबित कर ''
''तेरी तबियत ठीक है न ?''
'' बात मत बदल ''
''बात बदल ... खुदा के वास्ते ''
''मैं तुझसे शादी करने आया हूँ ''
''तो कर ''
''तू चाहती थी न ?''
''तू नहीं चाहता ?''
''मैं तुझे चाहता हूँ ''
या खुदा !!!
''मैं जाऊं ?''
''तू मुझे कन्फ्यूज़ करता है … चाहता क्या है ?''
''जो तू चाहती है ''
''अच्छा, ठीक है … कर लेते हैं ''
''शादी कर रही है या अहसान '
''अहसान तो तेरा है ,सारे काम छोड़ कर भरी दुपहरी में मुझसे शादी करने आया है ... बारात भी नहीं लाया किफायतशार कबूतर , जो तू न मिलता यूँ ही उम्र गुज़र जानी थी मेरी तो ,घर के दालान में भैंस की तरह जुगाली करते करते ''
'' बकवास मत कर ,वो कर जो रोज़ तोते की तरह रटती आई है अब तक ''
''शादी करवाएगा कौन ? लाया है किसी को साथ ?''
''बात तेरी मेरी है .. तीसरे का क्या काम ?''
''यही प्रॉब्लम है तेरी , यही प्रॉब्लम है .. तीसरे के नाम पर बिच्छू लड़ने लगते हैं तुझे ... तेरे साथ शादी कर के तो बच्चे भी नहीं आने के मेरी ज़िन्दगी में ... किसी तीसरे के नाम पर ही तेरा रंग सफेद पीला नीला काला हो जाता है। "
''तू क्यों लाल हो रही है ?''
'' तू जा यहां से ''
''तू मुकर रही है ''
'' आज ही करेगा शादी ? ''
''अभी . ''
अभी ..... अभी यहीं तो था … ये लहज़ा तो उसका नहीं था।गिन गिन कर लफ्ज़ बोलने वाला … हर लफ्ज़ का हिसाब अपने डायरी में इन्दराज करने वाला … लफ़्ज़ों से बादलों के फाहे रखने वाला … इतना बेबाक … कभी नहीं .... पर आया तो वो शर्तिया था। महज़ ख्याल नहीं था। हाँ ,आया था कई साल पहले …
(03-02-2015)
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